पंचमढ़ी यात्रा-जबलपुर से पंचमढ़ी भाग -2

पंचमढ़ी यात्रा जबलपुर से आगे......
               धुआँधार घूमने के बाद हम लोग पंचमढ़ी की ओर चल पड़े नागपुर हाइवे पकड़ कर सिवनी व छिन्दवाड़ा के रास्ते क़रीब दोपहर के तीन बजे के बाद हम लोग धुआँधार से निकले तो हम थोड़ा दूर चलने के बाद सुरेन्द्र जी  भूख सताने लगी थी तो (जैसा मैंने पहले भाग में बताया  था कि सुबह जो नाश्ता सुरेन्द्र जी ने कराया था )के बाद कुछ खाया नहीं था एक चाय ज़रूर पि ली थी रीवा जबलपुर व नागपुर तिराहे पर उसके बाद हमने कुछ खाया नहीं था तो कुछ दस किलोमीटर बाद एक ढाबे पर खाना खाने के लिए रुके और खाना खाने  के बाद निकल पड़े मंज़िल की ओर एक बाइक पर तीन लोग परेशानी तो हो रही थी पर हम सहन कर रहे थे पर सुरेन्द्र जी अपने नाज़ुक शरीर को कष्ट देने  में बहुत परेशान होते है तो बह वार वार आगे पीछे हिलना  जगह बदल के बैठने  की ज़िद कर रहे थे पर हम कहा सुन ने वाले थे इस यात्रा में सड़के इतनी अच्छी मिली कि सड़के गड्डा मुक्त व भीड़ भाड़ मुक्त बहुत मज़ा आया


                                                           सुंदर सड़क

इन सड़कों पे बाइक चलाने में और हम लोग सड़क व चारों तरफ़ की हरियाली को देखते हुए कब धुमा क़रीब 50 किलोमीटर आ गए पता भी नहीं चला और पता चलता कैसे सुरेन्द्र  व मैं दोनो एक से एक हँसमुख जो  इस यात्रा पर साथ थे तीसरा साथी भी ठीक हँसमुख  था यात्रा इसलिए और ख़ास थी कि तीनो यात्री अविवाहित (रडुआ) है कोई कैसी भी बाधा नहीं थी सिर्फ़ मस्ती इसी मस्ती मज़ाक़ में हम लोग कब लखनादोन व छपरा के रास्ते सिवनी तक १५४ किलोमीटर की दूरी दो घंटे में तय कर  सिवनी पहुँच गए



लेकिन हमारा लक्ष्य छिन्दवाड़ा में रुकने का था क्यूँकि वहाँ पर रामानन्द स्वामी जी के प्रवचन चल रहे थे बह हमारे गुरु जी पूज्य है तो उनका आशीर्वाद भी मिल जाता और रात्रिविश्राम भी हो जाता हम लोग शाम क़रीब 6:30 पर  छिन्दवाड़ा 223 किलोमीटर पहुँच गए और स्वामी जी को फ़ोन लगाया और स्वामी जी ने हमें लेने एक लड़के को भेजा और हमलोग स्वामी जी के पास पहुँच गए आशीर्वाद लिया सुरेन्द्र जी थोड़े दिखावे परस्त होने की वजह से स्वामी जी के पैरों में लेट गए फिर हमें हाथ पैर धोने  के बाद चाय नाश्ता आया उसके बाद स्वामी जी हमें आराम करने की बोल के बाहर लोगों के बीच चले गए वहाँ मथुरा के होने की वजह से लोग बहुत आदर  व सम्मान कर रहे थे स्वामी जी के बाहर जाने के बाद सुरेन्द्र  जी स्वामी जी की मिठाई व सेब आराम करने में ही ख़त्म कर गए जब स्वामी जी वापस आए तो सुरेन्द्र जी बोलने लगे गुरुजी भूख लगी है स्वामी जी अनजान बोले सुरेन्द्र एक सेव खा लो सुरेन्द्र जी चुप स्वामी जी खा लो सुरेन्द्र गुरुजी वो तो खा लिए चलो फिर मिठाई खा लो गुरुजी कहा है मिठाई देखो इस डिब्बे में सुरेन्द्र जी मायूश व चुप ( खाने के बहुत शौक़ीन है  सुरेन्द्र ) अब रात को खाना खाने के बाद हम सोने लगे हमारा लक्ष्य सुबह 5 बजे निकलने का था अब सुबह ५ बजे उठे नित्य क्रिया  से निव्रत होकर गुरुजी से आशीष लेकर चल पड़े पंचमढ़ी की ओर परसिया व तमिया के रास्ते पंचमढ़ी रेंज में पहुँच गए राष्ट्रीयराजमार्ग १९ पर करारखेड़ा,झिरपा व मढ़ौली होते हुए पंचमढ़ी की पहाडियो के रास्ते ऐसे रास्तों से मेरा पहला परिचय हुआ छिन्दवाड़ा से पंचमढ़ी दूरी 191 किलोमीटर तय।........;
पंचमढ़ी में प्रवेश.........
मध्यप्रदेश के एकमात्र पर्वतीय स्थल होशंगाबाद जिले में स्थित पचमढ़ी समुद्र तल से 1067 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। सतपुड़ा श्रेणियों के बीच स्थित होने और अपने सुंदर स्थलों के कारण इसे सतपुड़ा की रानी भी कहा जाता है। यहाँ घने जंगल, कलकल करते जलप्रपात और तालाब हैं। सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान का भाग होने के कारण यहाँ आसपास बहुत घने जंगल हैं। यहाँ के जंगलों में शेर, तेंदुआ, सांभर, चीतल, गौर, चिंकारा, भालू, भैंसा तथा कई अन्य जंगली जानवर मिलते हैं। यहाँ की गुफाएँ पुरातात्विक महत्व की हैं क्योंकि यहाँ गुफाओं में शैलचित्र भी मिले हैं।

पचमढ़ी सदाबहार सतपुड़ा पर्वत श्रेणी पर सुंदर पहाड़ियों से घिरा पठार है, जिसे पर्यटक प्यार से सतपुड़ा की रानी कहते हैं। इस पठार का वनक्षेत्र सहित कुल क्षेत्र लगभग 60 वर्ग किमी है। सामान्य मान्यता के अनुसार पचमढ़ी नाम, पंचमढ़ी या पांडवों की पांच गुफा से व्युत्पन्न है, जिनके संबंध में माना जाता है कि, उन्होंने इस क्षेत्र में अपना अज्ञातवास का अधिकांश समय बिताया था। अंग्रेजों के शासन काल में पचमढ़ी मध्य प्रांत की राजधानी थी। अभी भी मध्यप्रदेश के मंत्रियों तथा उच्च शासकीय अधिकारियों के कार्यालय, कुछ दिनों के लिए पचमढ़ी में लगते हैं। ग्रीष्म काल में यहां अधिकारियों की अनेक बैठकें भी होती है। यह आरोग्य निवास के रूप में उपयोगी है।

दर्शनीय स्‍थल.............
प्रियदर्शिनी प्‍वाइंट : यहां से सूर्यास्त का दृश्य बहुत ही लुभावना लगता है। तीन पहाड़ी शिखर बायीं तरफ चौरादेव, बीच में महादेव तथा दायीं ओर धूपगढ़ दिखाई देते हैं। इनमें धूपगढ़ सबसे ऊँची चोटी है।

रजत प्रपात: यह अप्सरा विहार से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 350 फुट की ऊँचाई से गिरता इसका जल इसका जल एकदम दूधिया चाँदी की तरह दिखाई पड़ता है।

बी फॉल: यह जमुना प्रपात के नाम से भी जाना जाता है। यह नगर से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पिकनिक मनाने के लिए यह एक आदर्श जगह है।

राजेंद्र गिरि : इस पहाड़ी का नाम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद के नाम पर रखा गया है। सन 1953 में डॉ॰प्रसाद स्‍वास्‍थ्‍य लाभ के लिए यहाँ आकर रुके थे और उनके लिए यहाँ रविशंकर भवन बनवाया गया था। इस भवन के चारों ओर प्रकृति की असीम सुंदरता बिखरी पड़ी है।

हांडी खोह : यह खाई पचमढ़ी की सबसे गहरी खाई है जो 300 फीट गहरी है। यह घने जंगलों से ढँकी है और यहाँ कल-कल बहते पानी की आवाज सुनना बहुत ही सुकूनदायक लगता है। वनों के घनेपन के कारण जल दिखाई नहीं देता; पौराणिक संदर्भ कहते हैं कि भगवान शिव ने यहाँ एक बड़े राक्षस रूपी सर्प को चट्टान के नीचे दबाकर रखा था। स्थानीय लोग इसे अंधी खोह भी कहते हैं जो अपने नाम को सार्थक करती है; यहाँ बने रेलिंग प्लेटफार्म से घाटी का नजारा बहुत सुंदर दिखता है।

जटाशंकर गुफा: यह एक पवित्र गुफा है जो पचमढ़ी कस्बे से 1.5 किलोमीटर दूरी पर है। यहाँ तक पहुँचने के लिए कुछ दूर तक पैदल चलना पड़ता है। मंदिर में शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बना हुआ है। यहाँ एक ही चट्टान पर बनी हनुमानजी की मूर्ति भी एक मंदिर में स्थित है। पास ही में हार्पर की गुफा भी है।
महादेव गुफ़ा :ऐसा कहा जाता है की भस्मासुर के डर से महादेव इसी गुफ़ा में छिपे थे

पांडव गुफा: महाभारत काल की मानी जाने वाली पाँच गुफाएँ यहाँ हैं जिनमें द्रौपदी कोठरी और भीम कोठरी प्रमुख हैं। पुरातत्वविद मानते हैं कि ये गुफाएँ गुप्तकाल की हैं जिन्हें बौद्ध भिक्षुओं ने बनवाया था।

अप्सरा विहार: पांडव गुफाओं से आगे चलने पर 30 फीट गहरा एक ताल है जिसमें नहाने और तैरने का आनंद लिया जा सकता है। इसमें एक झरना आकर गिरता है।

वापसी: वापस आते समय सुरेन्द्र   जी छिन्दवाड़ा से स्वामी जी के साथ रेल से चले गए और मैं  दूसरे साथी बाइक से से वापस टीकमगढ़ एक दिन में शाम को ७ बजे 360 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद टीकमगढ पहुच गए.








टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही सुंदर विवरण किया है अाप ने यात्रा का

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  2. bahi ji bahut hi sundar vivarn, par ek sujhav hai yadi aap template ka colour change kar de to aakhon par padne wala jor kam ho jayega
    rahichaltaja.blogspot.in

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  3. शानदार यात्रा वृतांत 👌💐🙏

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  4. अभी आपके ब्लाग की शुरुआत ही है अत: उस हिसाब से आपने लेखन में बहुत बढिया काम किया है लेकिन लगे हाथ आपकी कुछ कमियाँ भी बताना आवश्यक है। बुरा मत मानना, बुरा मानोगे तो पाठकों के अनुसार सही नहीं होगा, यदि किसी पाठक की सही सलाह हो तो उस पर अमल अवश्य करना,
    आपने दोनों लेखों में फुल स्टाप॥॥॥॥॥॥। ये वाले क्यों नहीं लगाये है?
    दूसरी बात जो भी लेख टाइप करो, उसे यहाँ छापने से पहले कम से कम दो बार प्यार से शांत मन से पाठक बनकर पढा करो, फिर देखना, आपके सभी लेख में एक नई ताजगी व ऊर्जा हमें देखने को मिलेगी, आशा है मेरी बात का बुरा नहीं मानोगे।
    अच्छी सलाह मानोगे तो आगे चलकर एक बडे यात्रा लेखकों में आपका नाम शुभार होने लगेगा, नहीं तो भीड में गुम हो जाओगे, फैसला आपके ऊपर है।

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    1. आपके सुझाव का मुझे बहुत बेसब्री से इंतज़ार था देवता जी और मैं अधिकतर सुझावों का बुरा नहीं मानता और आपके जो सुझाव मुझे मिले है में सब पे अमल करने को तत्पर रहूँगा आप भाइयों के सुझावों से ही लेखन में कुछ सुधार और ताजगी आएगी 🙏

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  5. बढ़िया लगे रहो भाई, घूमो , पढो और लिखते रहो

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  6. अमित भाई यात्रा लेख को और रोचक बनाने के लिये दार्शनिक स्थलों खुद की पसंद और नापसन्द का उल्लेख करना न भूले क्योंकि आप जो सही देखते वही यथार्थ पाठक के पास पहुंचे । किसी जगह की विशेष खूबी या कमी से लोगो अपने यात्रा प्लान में सहूलियत हो सकती है । बहरहाल शानदार लेखनी । कुछ शब्द तो हिंदी के बड़े ज्ञानी के पास ही हो सकती है जिनका उपयोग और चयन लाजबाब था ।

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  7. बहुत बढ़िया लेख है भाई, पुरानी यादें ताज़ा कर दी आपने पंचमढ़ी की.....

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